जहाँगीर का जन्म
लीम ( जहाँगीर) का जन्म 30 अगस्त, 1569ई ०को फतेपुर सिकरी मे स्थित सलीम चिस्ती की कुटिया मे आमेर जयपुर के राजा भारमल की पुत्री मरियम उज्जमानी के गर्भ से हुआ था सलीम पहला विवाह 1585 ई मे आमेर के राजा भगवान दास की पुत्री और मानसिंह की बहन मानबाई से हुआ था। इसी पत्नी से खुसरो का जन्म हुआ था। सलीम का दूसरा विवाह उदयसिंह मेवाड के पुत्री जगत गोसाई जोधाबाई के साथ हुआ था। इसी से खुरम का जन्म हुआ था। सलीम का दूसरा विवाह उदयसिह मापड की पुत्री जगत गौसाई जोधा बाई के साथ हुआ था। इसी से खुरम का जन्म हुआ था मलबाई को सलीम ने शाह बेगम का पद प्रदान किया था। किंतु बाद मे उसने सलीम की आदतो से दुखी होकर आत्म हत्या कर ली। जहाँगीर का व्यकित्व शाही न्याय केे चाहने बालों के लिए उन्होंने जंजीर ए अदल की स्थापना की जिसका अर्थ है न्याय की श्रृखला। उसने नूर उड दीन मुहम्मद जहाँगीर या विश्व के विजयता की उपाधि ग्रहण की
जहाँगीर ने निर्माण कराया
जहाँगीर ने लाहौर मे मोती मस्जिद और शाहदरा मे मकबरा भी बनवाया था। जहाँगीर ने लाहौर मे पर्ल मस्जिद जहाँगीर का मकबरा शाहदरा लाहौर स्थित है। जब 1627 में लाहौर के पास राजौर मे हुआ जगीर की मात्यु हो तो शुरू मे गार्डन मे चिपका हुआ था। तुजक ए जागीर फारसी भाषा मे लिखी जागीर की आत्मकथा है। जहाँगीर ने 1611 मे नूरजहा से शादी की जिसे मूल रूप मेहर उन निसा के नाम से जाना जाता था। तुजूक ए जहांगिरी फारसी भाषा में लिखी गई जहांगीर की आत्मकथा है। मुगल बादशाहगीर जहां अपने वयसरे के दिनों से ही चित्र कला के महान संरक्षक थे, उन्होंने उस समय के किसी महान चित्र को सक्षण दिया, जो मंसूर अबुल हसन दवंत और बसवं शामिल थे न्याय की प्रासिद्ध जंजीर लगवायी, जिसमें 60घंटिया थी और बारहए की घोषणा की प्रकाशित करबाया।
जगीर की बारह घोषणाओ के आईने जहां गिरी कहा जाता है
जगीर को गद्दी पर स्थित ही सर्वप्रथम 1606 ई 0 मे खुसरो के विदोह का सामना करना पडा। जगीर खुसरो को शिक्खो के पाॅचबे गुरु अर्जुन देव का आशीर्वाद प्राप्त था खुसरो को आशिवद् एवं आर्थिक साहयता देने के कारण जहाँगीर ने उन पर राजद्रोह का आरोप लगाकर फांशी की सजा दी थी तथा उनकी सारी संपति जब्त कर ली थी। खुसरो जहाँगीर के बिच युद्ध जलन्धर के निकट भेरवाला नामक स्थान पर हुआ था। जिसमे खुसरो खाँ हार गया था। जहाँगीर ने उस अंधा करबाव दिया और शाहजह ने एक हत्यारे द्वारा उसकी हत्या करवा दी। जहाँगीर ने 1602ई ० मे अपने मित्र वीरसिह बुंदेलों दूवरा अबुल फजल की हत्या करवा दी और वीर को अपने शासन काल मे 3000 घुड़ सवारो का मनसब प्रदान किया था।