भक्ति आंदोलन | Bhkti Andolan

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कबीर

भक्ति आंदोलन का विकास बारह अलवर वैष्णव शैव संत अप्पार राजा विद्वान वर्मन को शैव धर्म स्वीकार करते थे राजस्थान की हिंदी भाषी क्षेत्र मे  सक्रिय था और इसकी निर्गुण भक्ति मे आस्था थी शैव धर्म कबि संतो का और उनके बारे मे कहा गया था प्रथम समूह से मेल मिलाप हो सकता है अनुयायी भी वारारी या तीर्थ यात्रा मे भी अपना मेल मिलाप हक सकता है तिरस्थ नयनार शैव संतो ने किया। शैव संत आप सभी संबंधित व्यक्तियों को शैवधर्म ग्रहण करते हैं। भक्ति कवि संतो को संत कहा जाता है और उनके दो समूह थे। प्रथम समूह वैष्णव संत थे। विठोबा पंथ के संत और उनके अनुयायी कार्यकर्ता या तीर्थयात्री पंथ कहलाएथे, क्योंकि हर साल पैंटरपुर की तीर्थ यात्रा पर जाते थे। दूसरा समूह पंजाब और राजस्थान का हिंदी भाषी क्षेत्र मे सक्रिय था। और इसकी निपूर्ण भकित हर विशेता से परे भगवान की भक्ति मे आस्था थी। भक्ति आंदोलन को दक्षिण भारत से उत्तरभारत मे 12वीं शताब्दी के पारंभ में रामंद के दूवरा लाया गया। रामानंद की शिक्षा से दो संगोंडाह का प्रदुर्भव हुआ सगुण जो प्रज्ञावान मे विश्वाश रखता है और निर्गुण जो भगवान के निराकार रूप को पूजता है।संगूड संप्रदाय के स्वसे प्रसिद्ध व्याख्याताओ मे थे, तुलसीदास और नभदास जैसे राम भक्त और निंबार्क, वल्लाचार्य, चैतन्य सूर दास और मीरा बाई जैसे कृष्ण भक्त। निर्गुण जैसे कृष्ण भक्त। दर्ज भारतीय पंथ का आध्यात्मिक गुरु माना जाता है शंकराचार्य के अट्वैत के विरोध मे विरोध दक्षिण मे वैष्णव संतो दूवरा चार मतो की स्थापना की गई थी। अवेदतावाद- शंकराचार्य विशिष्टवेदतावाद रामानुजाचार्य शुद्धवेदतावाद-वल्लभचार्य वदैतावाद- माधव चार्य व्दैतावदैताबाद- निम्बकाचार्य भेदभेदाबाद – भाष्कराचार्य

भक्ति आंदोलन के संत

रामानुज 11वीं शताब्दी वे राम को अपना आराध्य मानते हैं उनका जन्म 1017 ई 0मे मद्रसार के निकट पेरुम्बर नामक स्थान पर हुआ था। 1137ई 0मे इनकी मौत हो गई। रामानुज रामानंद का जन्म 1299ई 0मे प्रयोग में हुआ था। उनकी शिक्षा प्रयोग का वारांसि मै हुई हुई वे अपने संप्रदाय सभी जातियों के लिए खोले गए रामानुज की भाति उन्होंने भी भक्ति को मोक्ष का एक मात्र साधन स्वीकार किया वे भी भक्ति मर्यादा पुरुषोत्तम राम एवं सीता की जाति को समाज के संक्ष में प्रमुख शिष्य थे रैदास हरिजन कबीर जुलाहा धन्न जाट सेना नाई पीपा कबीर कबीर का जन्म 1425 ई 0मे एक विधवा ब्रामाणि के गर्भ से हुआ थे, लोक लज्जा के भय से उनके नबजात शिशु को वरंशी मे लहरता के पास एक तालाब के समीप छोड़ दिया जुलाहा निरू तथा उनकी पत्नी नीमा इस नवजात शिशु को अपने घर ले आएं

गुरु नानक

 

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